Lendhara, Baramkela, Raigarh, C.G. +91 8718811978 info@parascg.org
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Testimonial Child


मैं कल्पना कुजूर जो पारस स्वयंसेवी संस्था केन्द्र- लक्ष्मीपुर में पढ़ाई करती हूं ।एक दिन मैं धरमजयगढ़ में मेला आया था | तो मेला घूमने गई थी ।मेला में मैने झूला झुला और मैने कुछ कुछ अच्छी अच्छी समान सब भी खरीदा ।फिर मैं दूसरे दिन केन्द्र पड़ने गई और अपने दोस्तों से मिली और अपने दोस्तों से कल मैं मेला देखने गई थी।उसको अपने दोस्तों को बताई और उनको भी कभी घूमने जाना बोली।मुझे मेला देखने जाना बहुत अच्छा लगता है । और केंद्र में पड़ने आना और अपने दोस्तों से मिलना बहुत अच्छा लगता हैं । और दीदी जी के द्वारा जो हमें गतिविधिओ के माध्यम से जोड़ो ज्ञान , अगस्त्य किट से पढ़ाती है तो जल्दी समझा आता है और मुझे बरखा सीरिज की कहानी बहुत अच्छी लगाती है | जिससे मुझे पढाई के प्रति और रूचि बड़ी है में आगे चल कर शिक्षक बनाना चाहती हु मुझे पढाई हमारे गाव में केंद्र खोलने के लिए में ईम्पेक्ट - पारस स्वयंसेवी संस्था रायगढ़ को बहुत बहुत धन्यवाद देती हु ।

Testimonial Parents


मेरा नाम शिवकुमारी राठिया है मेरे पति का नाम परदेशी राठिया है मेरी बेटी का नाम भारती राठिया है | भारती राठिया की सारी सफलता और खूबियाँ उसके शिक्षिका को समर्पित हैं। हम भारती राठिया की प्रतिक्रिया , परिणाम सुनकर वास्तव में प्रसन्न हैं और श्रीमती निर्मला यादव को उसकी शिक्षक के रूप में पाकर और भी अधिक प्रसन्न हैं। अपनी परीक्षाओं और कक्षा में भारती राठिया के प्रदर्शन का पूरा श्रेय शिक्षिका को जाता है क्योंकि उसने अपने शिक्षिका की कड़ी मेहनत और धैर्य के कारण हर साल सुधार किया है। ईम्पेक्ट – पारस बेटी पढाओ केंद्र न केवल भारती राठिया को ज्ञान प्रदान करने के मामले में आत्मविश्वास और अभिव्यक्ति पैदा करने में भी एक बड़ा समर्थन रहा है। इस कठिन समय में भारती राठिया और कक्षा के सभी बच्चों को दी गई सभी शिक्षाओं और स्नेह के लिए हमारी हार्दिक कृतज्ञता, जो वास्तव में सराहनीय है और शब्दों की अभिव्यक्ति से परे है।

हम अपने बच्चों को विभिन्न आभासी गतिविधियों के माध्यम से प्रेरित रखने और इस कठिन और अनिश्चित समय में उनके भविष्य को उज्ज्वल करने के लिए उनके समर्थन और सहयोग के लिए ईम्पेक्ट – पारस बेटी पढाओ केंद्र और प्रबंधन को भी धन्यवाद देना चाहते हैं। ईम्पेक्ट – पारस बेटी पढाओ केंद्र के आने वाला वर्ष अद्भुत और सुरक्षित हो।

Teacher Case Story-


Child Case Story


नाम - कु. दीपिका बैगा

पिता का नाम – श्री सुकनसिंग बैगा

माता का नाम – श्रीमती - सनकुमारी बैगा

परिवार में कुल सदस्य – 6

केन्द्र – बोरो

केन्द्र कोड- LC-01483


यह केस स्टोरी कुमारी दीपिका बैगा की है । जिसके मम्मी का नाम श्रीमती संकुमारी बैगा है तथा पिताजी का नाम श्री सुकनसिंग बैगा है इनके परिवार के सदस्यों की संख्या 6 है। उनके परिवार में इनके दादा-दादी,चाचा-चाची,माता-पिता व उनकी दो बेटियां तथा एक बेटा है। इनका परिवार बहुत बड़ा है, और यह मजदूरी की सहायता से ही अपने परिवार का पालन पोषण करते हैं।

इनके गांव बोरो में इंपैक्ट पारस बालिका शिक्षा केंद्र खुला है । जिसमें नए बालिकाओं ने प्रवेश लिया । इसके माता-पिता ने इसका भी नाम केंद्र में दर्ज करवाया तथा इसके साथ-साथ इसकी दोस्तों का भी नाम उन्होंने केंद्र में दर्ज करवाया। सभी दोस्त प्रतिदिन केंद्र तैयार होकर आती और पढ़ाई करती थी । क्योंकि इनका एक छोटा भाई भी है तो जब इनके मम्मी-पापा और चाचा-चाची काम के लिए जाते थे, तो उनके भाई को छोड़कर जाते थे। तो इनकी दादी घर का सारा काम करती थी। क्योंकि दीपिका बड़ी बहन थी , इसलिए वह अपने दादी के काम में हाथ बटाती । जैसे झाड़ू लगाना,सब्जियां काटना, भाई को संभालना

 यह सब काम वह करती । अपने भाई को बहुत अच्छी तरह से संभालती है और उसका भाई भी अपनी बहनों के साथ अच्छी तरह से रहता था। और जब गांव में बालिका शिक्षा केंद्र खुला तो इसके मम्मी-पापा तथा दीपिका बहुत खुश हुए ।

जब भर्ती हुई उस समय दीपिका को पढ़ना लिखना कुछ भी नही आता था,लेकिन गांव में पढ़ाई नही होने के कारण दीपिका के माता - पिता भी ज्यादा पढ़े लिखे नही है,तो उनके पढ़ाई में सहायता किसी से भी नही मिल पाता है तो वह रोज सेंटर पढ़ने आती है | और टीचर के द्वारा ही पढ़ाई करती है । टीचर के द्वारा पढ़ाया गया को ध्यान अच्छे से देती है ,और टीचर जो पढ़ने लिखने के लिए दिए रहती है उसको नियमित रूप से करती है तथा मॉनिटर के रूप में पूरी बच्चों को रीड करती है और सेंटर से जाने के बाद उनके बहनो के काम मे हाँथ बटाती है और सभी बच्चों को रोज केंद्र आने के लिए प्रेरित करती है। वह प्रतिदिन सुबह तैयार होकर अपने दोस्तों के साथ समय पर केंद्र आती और उसके ही जैसे और भी बहुत सारी बालिकाएं केंद्र पढ़ने के लिए आती है | उनको पढ़ाने के लिए बोरो गांव से ही एक दीदी आती जिसका नाम श्रीमती भगवती पटेल है । जो उनको नए-नए कविता,कहानी,गतिविधियों के माध्यम से बताती चार्ट के माध्यम से चित्रों को दिखाकर पढ़ाया करती। सभी बच्चियां भी खुशी-खुशी पढ़ाई करते इनको भी पढ़ाई करना केंद्र में बहुत अच्छा लगता वह केंद्र में जाते ही सर्वप्रथम प्रार्थना करते उसके बाद पढ़ाई शुरू करते। वह बहुत सारी कविताएं भी सीख गई है जो की घर में आकर वह अपने मम्मी-पापा, दादा -दादी,चाची-चाचा सभी को सुनाती है। तथा इसी तरह बच्चों की पढ़ाई लिखाई चल रही थी।

इस तरह इन बच्चियों का केंद्र चलता रहा तथा इनको केंद्र में बरखा सीरीज पुस्तक भी दिया गया| जिससे बच्चे सरल शब्दों में बहुत अच्छी अच्छी कहानियां सीख रही है। रोजी भी हर दिन एक या दो कहानियां पड़ती है और घर में आकर कहानियों को अपनी भाषा मैं अपने परिवार वालों को बताती है। इस तरह इनकी पढ़ाई लिखाई देखकर गांव वाले भी तथा इनके पालक और घर वाले भी बहुत खुश हैं और इंपैक्ट बालिका शिक्षा केंद्र का धन्यवाद करते हैं क्योंकि इनके चलते हैं यह सब बालिकाएं आज इतना आगे बढ़ रही है।

Teacher Case Story

अनुदेशिका का नाम - पदमिनी बेहरा

पिता का नाम - श्री शंकर

माता का नाम – श्रीमती शकुंतला

कुल परिवार में सदस्य – 6

उम्र - 26  वर्ष

वर्ग - पिछड़ा

व्यवसाय - कृषि

केंद्र का नाम - लक्ष्मीनगर

गाँव - लक्ष्मीनगर

केंद्र क्र. – LC- 01478

यह केस स्टोरी पदमिनी बेहरा की है, जो वर्त्तमान में ईम्पेक्ट - पारस बालिका पढाओ कार्यक्रम के तहत केंद्र लक्ष्मीनगर में वर्ष 2023 से अनुदेशिका के पद पर कार्यरत है | ये मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती है | पिता कम पढ़े लिखे हैं । लेकिन इनके माताजी पढ़ी लिखी है , फिर भी उनके माता-पिता ने इनकी शिक्षा का समर्थन किया , पांचवी तक लक्ष्मी नगर में ही पढ़ाई की उसके बाद ,आगे की पढ़ाई के लिए जमार्गी डी तक पैदल जाना पड़ा जो की उनके गांव से 5 किलोमीटर दूर है । दसवीं तक की पढ़ाई जमार्गी डी

में ही की और मैं 12 वीं तक धरमजयगढ़ में पढ़ाई की । ये एक शीर्ष छात्रा थी | इनका ध्यान समान रूप से खेल में था| कॉलेज की पढ़ाई के लिए धरमजयगढ़ से बाहर जाना था । क्योंकि मैं 11वीं और 12वीं में साइंस सब्जेक्ट से पढ़ाई की थी। और अपना कालेज भी पूरा किया | और उसके बाद ये पूरे जोश के साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी और छुट्टी में घर जाकर काम करती थी ,और खेती का पूरा कामो में अपने पिता की मदद करती थी ।क्योंकि इन्हें छात्रवास नहीं मिल रहा था , इसलिए घर से ही आना जाना करती थी । लेकिन उम्र के साथ और चिंतायें भी बढ़ती गई ।अब इनके पिता इनका पढ़ाई छोड़ने के लिए कह रहे थे , क्योंकि इनके पढ़ाई का बोझ इनके भाई बहनों पर भी पड़ रहा था । फिर इनको पारस स्वयंसेवी संस्था द्वारा संचालित बेटी पढाओ कार्यक्रम के बारे में उनके दोस्त से पता चला | उन्होंने बताया कि पारस सेवी संस्था द्वारा संचालित केंद्र लक्ष्मीनगर में अनुदेशिका की आवश्यकता है | उसके बाद इन्होने फॉर्म भरा और परीक्षा में और लोगो के साथ सामिल हुए | जिसमे परीक्षा में अच्छे अंक और साक्षात्कार के बाद इनका चयन हुआ | उसके बाद सुपरवाइजर के द्वारा लक्ष्मीनगर केंद्र में बुला कर काम के बारे में समझाया गया और पूछा क्या आप लक्ष्मीनगर केंद्र में काम करना चाहोगे, इन्होने हां बोला | मेरी पहली सेलरी उन्होंने अपनी माँ को दिया जिससे इनकी माँ के आखो में आशु आ गया | जिससे उनको भी लगा की वह भी अपने परिवार के लिए बहुत कुछ कर सकती है और आर्थिक सहायता कर सकती है | जिससे मन में एक अलग ही ख़ुशी और उत्साह था | वहा पर कार्य कर , वहां के सीएमसी सदस्यों और पालकों ने इनकी अच्छी मदद की बच्चे भी मन लगाकर पढ़ने आते थे । गांव वालों का भी पूरा सहयोग मिला, ये पहले गाव के लोगो बात नहीं कर पाते थे | जिससे पालक संपर्क में समस्या आती थी | और दस्तावेज भी नही बन पाते थे | जिससे पर्यवेक्षक के सहायता से धीरे – धीरे सिखा और अभी सभी कार्य सफलता पूर्वक करती है | इकना अनुदेशिका प्रशिक्षण में अपनी बराबर भाग लेती है | और अब बच्चो को भी ये बहुत अच्छे से पढाई है | जिससे इनको छोटे बच्चो को पढ़ाने का नया अनुभव मिला साथ ये बताती है की यहाँ काम कर इनके पारिवारिक स्थिति में भी सुधार आया है और गाव में इनकी अलग पहचान बनी है | जिसके लिए ये ईम्पेक्ट – पारस स्वयंसेवी संस्था को धन्यवाद देती है |

Case Story CMC Member

नाम - कलावती अगरिया

पति - मगतूराम अगरिया

गांव – जबगा

कुल सदस्य – 5

यह केस स्टोरी कलावती अगरिया ग्राम जबगा पोस्ट बोरो जिला रायगढ़ छत्तीसगढ़ में रहती है । इनके पति का नाम श्री मगतूराम अगरिया हैं। इनके घर में कुल 5 सदस्य रहते हैं । जिसमें दो बेटी और एक बेटा है , बेटी का नाम तमन्ना अगरिया है, और छोटी बेटी का नाम थमरिताअगरिया है, और बेटे का नाम खुलेश अगरिया है। इनके घर की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने में असमर्थ हैं ।और ये दोनों पति पत्नी प्रतिदिन दूसरों की मजदूरी करने जाते हैं ,और घर में बच्चों को देखभाल करने के लिए कोई नहीं है ,जिस कारण रहन सहन साफ सफाई खानपान का कोई समय सारणी नहीं रहता है । तो बच्चों को बहुत समस्या होता है ,ये दोनों पति पत्नी ज्यादा पढ़े लिखे नहीं होने के कारण ये यही सोचते थे , कि क्या इनके बाल बच्चे को आगे नहीं पढ़ा सकते यही सोच हमेशा इनके ध्यान में आता रहता था | क्योंकि इनके पास खाने के लिए कभी-कभी नहीं मिलता है | तो बच्चों के पढ़ाई लिखाई के लिए और कपड़ा के लिए पैसा कहां से मिलेगा यही सोचकर बच्चों को पढाना नहीं चाह रहे थे | क्योंकि सभी बच्चे स्कूल जाते समय अच्छे-अच्छे कपड़ा जूता टाई बैग पेन कॉपी पुस्तक लेकर जाते रहते हैं | और इनके बच्चे के मन में भी यही जिज्ञासा उठता है | तो हम यही सोचने लग गए कि एक तो हमारा आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है ,और दूसरा बच्चों की पढ़ाई लिखाई का खर्चा उठाने में सशक्त नहीं है | इस कारण बच्चों को पढ़ाना लिखा ना नहीं चाहते थे , तभी ग्राम पंचायत जबगा की अनुदेशिका नमिता झरिया के द्वारा सुबह-सुबह रोज आना होता है | तभी पारस स्वयंसेवी संस्था के बारे में बताया गया यहां बच्चों के पढ़ाई को लेकर और उन बच्चों को जो पढ़ाई छोड़ देते हैं और बिल्कुल भी पढ़ाई नहीं करते हैं और जिनका आर्थिक स्थिति सही ना हो उन बच्चों को आगे ले जाने का कार्य करता है | तभी घर की बच्ची का दाखिला केंद्र में कराया गया अब हमारी बच्ची प्रतिदिन केंद्र जाती है | और अपना खुद का कपड़ा साफ कर लेती है और स्वयं से शाम के टाइम पढ़ाई कर लेती है और पढ़ाई के संबंध में काफी रुचि है | और केंद्र में हर तीन माह में एसएमसी मीटिंग किया जाता है जिसमें ये एसएमसी मीटिंग की अध्यक्ष है | हमारे केंद्र जबगा में सीएमसी मीटिंग में बच्चों के पढ़ाई को लेकर चर्चाएं होती है जैसे –

1) बच्चों के पढ़ाई लिखाई के संबंध में |

2) बच्चों के होमवर्क चेक करने के संबंध में

3) के स्वास्थ्य के संबंध में

4) केंद्र में कोई कार्यक्रम किया जाना होता है उसके बारे में भी चर्चा होता है |

इनके घर के सामने ही सेंटर है और मैं रोज सुबह झाड़ू लगा देती है | और बच्चों को बीच-बीच में देखने भी जाती हूं कि बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं या नहीं और बच्चे किस प्रकार पढ़ाई करते हैं | वह सब भी देखती है | जब से हमारे गांव में बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ पढ़ाई शुरू हुआ है | तब से गांव में भी परिवर्तन हुआ है ,और बच्चों की पढ़ाई में भी काफी सुधार हुआ है और मैं पारस स्वयंसेवी संस्था को धन्यवाद देते हुए कहती हूं की हमारे बच्चों को नए नए चीजे सीखने को मिलते रहे।


Parent Case Story-

नाम- सविता बंजारा

उम्र- 29 साल

पति- आलेख बंजारा

परिवार के कुल संख्या 6

गांव-जामदलखा

यह कहानी सविता बंजारा का है जो ग्राम जामदलखा, पोस्ट डोंगरीपाली तहसील बरमकेला जिला रायगढ़ छतीसगढ़ की मूल निवासी है। ग्राम जामदलखा, रायगढ़ जिले से 70 किलोमीटर दूर कोठी खोल एरिया में स्थित है ।इनके परिवार में कुल 6 लोग रहते हैं उनके मम्मी-पापा और उनके पति और उनके दो बच्चों के साथ ग्राम जामदलखा में रहते हैं । सविता बंजारा अपने माता-पिता की इकलौती बेटी है जो शादी करके अपने माता-पिता के साथ रहती है। इनकी माता पिता बुजुर्ग हो जाने के कारण उनका देखभाल कर रहे हैं। इन की जमीन जायदाद नहीं है वह मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करते हैंसविता की मां झाड़ू बनाती है और उनके पति मछली बेचकर दूसरों का मजदूरी करके जो भी पैसा आता उसे घर का गुजारा कर रहे हैं। सविता को अपने माता-पिता बहुत ही पसंद करते थे। जब सविता छोटी थी तो उसे बहुत ही लाड प्यार करते थे। सविता की पढ़ाई प्राथमिक शाला बनहर में कक्षा पहली से पांचवी तक हुई।उसके बाद अपने गांव में माध्यमिक शाला ना होने पर हुए सविता पढ़ने के लिए गए वहां पर आठवीं क्लास तक की पढ़ाई पूरी कर ली और उनको साइकिल ना आने पर हुए उच्च स्तर की पढ़ाई नहीं कर पाई ।

पढ़ाई छूट जाने के बाद सविता अपने माता पिता के साथ काम करने के लिए जाती खाना बनाती और अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रहती थी कुछ सालों बाद सविता की शादी हो गई नदगांव में। कुछ साल नद गांव में रहने के बाद सविता और उसके पति घर में अपने माता पिता के साथ रहने लगे सविता की एक बेटी और एक बेटा है बेटी का नामदिव्या बंजार है जो पारस बालिका शिक्षा केंद्र वनहर में पढ़ती है जिसकी उम्र 9 साल है और उसके भाई को 5 साल हो रहा है। ये अपने बच्चों का लालन पोषण बहुत अच्छे से कर रही है और बच्चों को प्रतिदिन सेंटर भेजती है और जो भी बच्चा नहीं जानता उसको अपने पति के साथ दिव्या को पढ़ाती है सविता का व्यवहार बहुत ही अच्छा है वह अपने परिवार और आसपास के लोगों से मिलजुल कर रहती है। सविता और उनके पति का हमारे केंद्र में बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि जब भी हमारे केंद्र में सीएमसी मीटिंग का बैठक किया जाता है सविता और उनके प्रति मीटिंग में उपस्थित रहते हैं और और अपने बच्चों की समस्याओं को बचाते हैं और किस प्रकार निवारण किया जाए हल भी बताते हैं। और बच्चे की पढ़ाई से मैं बहुत ही खुश हैं ।

बच्चों के पढ़ने के लिए केंद्र बना तो अन्य पालक गणों के साथ मिलकर केंद्र का निर्माण किया गया और बीच-बीच में केंद्र में किस प्रकार का पढ़ाई हो रहा है कोई समस्या हो रहा है केंद्र की साफ सुथरा आदि का देखरेख पर रखरखाव करती है। सविता अपने बच्ची दिव्या सुधार की पढ़ाई को लेकर बहुत ही परेशान थी वह सोचती कि हमें तो अपने अपने लाइफ में पढ़ाई नहीं कर पाई लेकिन मैं अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा लिखा कर एक उज्जवल भविष्य दो और उसकी मानसिक तार्किकता में कुछ सुधार हो। सविता और उनके परिवार वाले बहुत ही खुश हैं क्योंकि इंपैक्ट पारस बालिका शिक्षा केंद्र वनहर में खुला है जिसमें बच्चों को समय में पढ़ाया जा रहा है और जाकर बहुत सारी गतिविधियों को सीख रही है और घर वालों को बता रहे है। श्रीमती सविता का सोचना है कि गांव घर में बच्चों का पढ़ाई स्तर पहले से काफी सुधार हुआ और बच्चों को पढ़ाने में सभी ही उत्सुक हैं और दिव्या भी अच्छे से पढ़ रही है इसीलिए के माता-पिता बहुत ही खुश है। बच्चों के हर जरूरतों के सामान को पूरा कर रहे हैं और अपने बच्चों परिवार के साथ खुशी-खुशी से रह रहे हैं।

Teacher Case Story –

नाम –पूजा सिंह ठाकुर

केंद्र- जीरापाली

केंद्र कोड- LC-00401

शिक्षक कोड- TE-05971

यह कहानी -कु.पूजा सिंह ठाकुर की है।गांव- पतेरापाली श्री ओमप्रकाश सिंह ठाकुर,माता जी का नाम श्रीमती नम्रता सिंह ठाकुर है। पूजा एक छोटे परिवार से है।इनके घर में कुल चार सदस्य हैं।मम्मी- पापा, एक बड़ी बहन और पूजा।इनका छोटा परिवार सुखी परिवार है।इनको बचपन से ही इनके मम्मी -पापा बहुत लाड प्यार से रखा है।इनके मम्मी पापा दोनों बहनों को वो अपना बेटी ,बेटा मानते हैं।दोनों बहनें अपनी प्राथमिक शिक्षा पतेरापाली मे किया है,फिर माध्यमिक शिक्षा के लिए इनको झाल जाना पड़ा।

माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद उसी गांव झाल मे ही 9वीं से 12वीं तक की पढ़ाई हाईस्कूल मे पूरा किये हैं।पहले पढ़ने जाने के लिए अच्छा रास्ता नहीं था।ये लोग जंगल के रास्ते से अपने सहेलियों के साथ पैदल पढ़ने जाते थे।इन्होंने खूब मेहनत करके अपनी पढ़ाई पूरी की है। दोनों बहनों की आगे की पढ़ाई के लिए उसके पापा ने रायगढ़ मे उनका नाम भर्ती करवाया।रायगढ़ मे ही रहकर कालेज की पढ़ाई पूरी किये । दोनों बहनों की पढ़ाई पूरी होने के बाद घर मे ही थे। एक दिन की बात है इनके आस पास के गांव में बालिका शिक्षा केन्द्र खुलने की जानकारी मिली।जिसमें बस बालिकाओं को पढ़ाना था।पूजा और उसके घर वालों को बालिका शिक्षा केन्द्र के बारे मे पता चला ।इन्होंने सोचा कि हम लोग पढ़ाई करके घर पर ही है हमें बालिकाओं को पढ़ाने का मौका मिल जाता तो कितना अच्छा होता।फिर केन्द्र आमापाली मे अनुदेशिका के पद हेतु पूजा की दीदी को कहा गया।उन्होंने बहुत खुश हुआ कि उसे बच्चों को पढ़ाने का मौका मिल गया। इन्होंने इन्टरव्यू दिया और सेलेक्ट हो गयी।फिर रोज बालिकाओं को पढ़ाने गयी। फिर पूजा सिंह ठाकुर को भी बालिका शिक्षा केन्द्र मे काम करने हेतु कहा गया ,पूजा ने सोचा कि कितना सौभाग्य की बात है हम दोनों बहनों को बालिकाओं को पढ़ाने का मौका मिल रहा है।पूजा ने भी इन्टरव्यू दिया और सेलेक्ट हो गयी। उसे पारस बालिका शिक्षा केन्द्र जीरापाली मे अनुदेशिका का पद मिला ।इसने 2020 में बालिका शिक्षा केन्द्र मे join किया।बालिका शिक्षा केन्द्र 7-11 बजे तक लगता है।पूजा केन्द्र को समय पर पहुंच जाती है तथा बच्चे भी समय पर केंद्र पढ़ने आते हैं। केन्द्र में बालिकाओं को कविता, कहानी सिखाया जाता है, नये नये खेल खेलाया जाता है।बच्चे खुश होते हैं और रोज पढ़ने आते हैं।जीरापाली के बच्चे व उनके मम्मी पापा भी बहुत खुश है क्योंकि बच्चे पहले की अपेक्षा बहुत कुछ सीख गये थे।उन बच्चों के पालक भी रोज अपने अपने बच्चों को तैयार कराके समय पर केन्द्र पढ़ने भेजते थे।इसी तरह अच्छे से बालिका शिक्षा केन्द्र मे पढ़ाई चल रहा था।कुछ दिन बाद कोरोना महामारी आ गया जिसमें सरकार द्वारा हर तरफ लाकडाउन कर दिया ।एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने के लिए बंद कर दिया ताकि सभी लोग सही सलामत घर मे रहें।लेकिन लोगों को बहुत दिक्कत आयी ,वो सोचने लगे अब बच्चे कहां पढ़ेंगे, हम लोग कमाने नहीं जायेंगे तो अपना घर कैसे चलायेंगे ,क्या खाकर जिंदा रहेंगे।फिर सरकार ने लोगों की दिक्कतें और जरुरतों को देखते हुए फ्री मे चावल,चना,नमक,मिट्टी तेल ,शक्कर दिया ताकि सब अपने अपने परिवार का भरण पोषण कर सकें और सब सकुशल रहें।एक स्थान से दूसरे स्थान आने जाने का तो बंद हो गया लेकिन बालिकाओं की पढ़ाई बंद नहीं हुआ।अनुदेशिकाओं को कहा गया कि बच्चों को 4-4 के समूह में पढ़ाना है, सेनिटाइजर का उपयोग करना है ,मास्क का उपयोग करना है और बच्चों को पढ़ाना है।कुछ दिन बाद घर घर जाकर भी दो दो बच्चों को पढ़ाती थी।इसी तरह बच्चों की पढा़ई नहीं रुकी ,चलती ही रही। फिर कुछ दिन बाद सर लोगों द्वारा बच्चों को मोबाइल मे Online पढ़ाने हेतु कहा। अनुदेशिका कु.पूजा द्वारा बच्चों को मोबाइल में भी पढ़ाया और केंद्र गांव वालों को कोरोना से बचने के उपाय को भी घर घर जाकर बताया ।जब तक कोरोना महामारी खतम नहीं हुआ तब तक ऐसे ही बच्चों को पढ़ाती रही ।फिर धीरे धीरे कोरोना महामारी मे सुधार हुआ और पहले की तरह सभी बच्चों को साथ मे पढ़ायी। बच्चे केन्द्र मे नया नया खेल सीखते हैं, कविता, कहानी भी अनुदेशिका द्वारा सिखाया जाता है गतिविधि के साथ । अनुदेशिका के पढ़ाने का तरीका देखकर गांव वाले बहुत खुश कि पढ़ाई के साथ साथ खेल ,कविता, कहानी भी सीखा लेती है।इनके केन्द्र में बीच बीच में कार्यक्रम भी होता है तो हर बच्चे भाग लेते हैं और सभी के मम्मी पापा भी कार्यक्रम में शामिल होते हैं और बच्चों की उत्सुकता को बढ़ाते हैं। पूजा पहले बहुत कम बोलती थी ,अभी बच्चों के साथ काम करते हुए बहुत सुधार हुआ है ।अब किसी के सामने मे बेझिझक बात कर सकती है ,सही/गलत का निर्णय लेती है तथा केन्द्र मे जो भी दिक्कत आती है सबके सामने अपने बात को रखती है। पालक भी इसकी बातों को सुनते हैं और सुझाव देते हैं। अनुदेशिका कु. पूजा सिंह ठाकुर अब बहुत खुश है इसको बच्चों के साथ काम करने मे बहुत दिन हो गये हैं ।इसने बच्चों के साथ काम करके अपना एक नया पहचान बनाया है। प्रशिक्षण के माध्यम से भी इन्हें बहुत कुछ सीखने को मिला है बच्चों को जोड़ो ज्ञान कीट के माध्यम से पढ़ाना अगस्त्य किट के माध्यम से भक्ति के बारे में बताना एवं नई नई कविता सीखना और बच्चों को सिखाना आसान हुआ है केंद्र में बच्चों को एक्टिविटी के साथ कविता भी सिखाती है साथ ही हिंदी अंग्रेजी गणित विषय में बच्चों को आसानी से समझाती है lइम्पैक्ट पारस को धन्यवाद करती है और आशा करती है कि बालिका शिक्षा केन्द्र हमेशा चलता रहे और बच्चों की पढा़ई हमेशा जारी रहे ताकि बच्चे भी अच्छे से पढ़ाई करके आगे बढ़े और अपनी एक पहचान बनाये ।

Child Case Story-

नाम – सोनिया बरिहा (CH- CH-117321)

केंद्र- करनपाली

केंद्र कोड-00439

यह कहानी कुमारी सोनिया बरिहा की है, इसके पिता का नाम श्री खुबीचंद बरिहा माता का नाम श्रीमती हेमकुमारी बरिहा है | यह गांव करनपाली, तहसील बरमकेला, जिला सारंगढ़ बिलाईगढ़ की मूल निवासी है | उनके घर में कुल 5 सदस्य हैं | जिसमें दो बहन मां पापा सोनिया बरिहा रहती है इसकी परिवार की आरती की स्थिति ठीक नहीं होने के कारण पढ़ाई में असमर्थ रही है | उसके गांव कारनपाली मैं नवंबर 2019 को इंपैक्ट पारस स्वयं सेवी संस्था बालिका शिक्षा केंद्र खुला, जिसमें गांव के बालिकाओं का नाम भर्ती किया गया तो केंद्र में सोनिया को भी उसकी मां ने भर्ती किया | पहले वह गांव अपने घर में ही रहती और अपने दोनों बहनों को खेलाती थी और अपने पास रखती थी | उसकी दोनों छोटी बहन है उसके मां-बाप काम करने जाती थी जिसके कारण यह उसकी दोनों बहनों को अपने साथ घर में रखी थी, वह घर में अपनी मां की कामों में मदद करती थी |

जब उसके गांव में बालिका शिक्षा केंद्र खुला, जिसमें गांव में बालिकाओं को पढ़ाया गया तो उसकी मां पापा खुशी हुई| कि अब गांव में बालिकाओं को पढ़ने के लिए केंद्र खुला है अब हमारी बेटी घर के कामों के साथ-साथ पढ़ाई भी कर लेगी | सोनिया भी बहुत खुश हुई कि अब वह पढ़ने जाएगी और घर के कामों से छुटकारा मिलेगा और वह पढ़ लिख पाएगी | केंद्र में उसके जैसे बहुत सी बालिकाएं पढ़ने आती है बालिकाओं को पढ़ने के लिए दूसरे गांव से एक दीदी आती है जिसका नाम कुमारी प्रीति बरिहा है दीदी सभी बालिकाओं को बहुत अच्छा से पढ़ाती है और कविता कहानी खेल के माध्यम से पढ़ाती है बच्चे बहुत खुश हैं | वह रोज केंद्र को पढ़ने आते हैं | केंद्र में बहुत से कार्यक्रम भी होते हैं, जिसमें सभी बच्चे भाग लेते हैं, तथा खेलकूद भी करवाया जाता है | सोनिया बरिहा बालिका शिक्षा केंद्र पढ़ने जा कर बहुत खुश है | वह रोज सुबह तैयार होकर समय पर केंद्र को पढ़ने जाती है, वहां उनको चार्ट के माध्यम से भी चित्र को बताकर पढ़ाया जाता है | जिससे बच्चों का मन लगा कर पढ़ाई करते हैं | करणनपाली के सभी लोग बालिका शिक्षा केंद्र को लेकर बहुत खुश है, क्योंकि वह गांव पढ़ाई के क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था |

सोनिया बरिहा केंद्र पढ़ने जा कर बहुत खुश है क्योंकि वहां चित्रकला भी करवाया जाता है और चित्रकला करना सोनिया को बहुत पसंद है उसके घर बीच-बीच में केंद्र की दीदी पालक संपर्क के लिए जाती है| उसको प्रथम बुक मिला है जिसमें छोटे बड़े कहानी कविता पहेली या दिया गया है जिससे पढ़ के बच्चे बहुत खुश होते हैं और बहुत कुछ सीखने को मिलता है जब पहले दिन सोनिया केंद्र पढ़ने आई तो बहुत डरी और सहमी क्योंकि उसने कभी केंद्र पढ़ने नहीं आई थी और पहले उससे कुछ नहीं आता था अब रोज केंद्र आकर बहुत कुछ सीख गई है अब सोनिया सभी बालिकाओं के साथ मिलजुल कर रहती है | उसको चित्र बनाना कविता सुनाना अच्छा लगता है, हर गतिविधि करवाना अच्छा लगता है | वह रोज केंद्र में 2 -3 कहानियां पढ़ती है | जब उसने केंद्र में प्रवेश लिया,उसके घर वाले भी बहुत खुश है, कि उसकी बेटी पढ़ाई कर रही है | सोनिया बरिहा हमेशा यह आशा करती है, कि वह केंद्र हमेशा खुले क्योंकि इसी केंद्र में ही पढ़ लिख कर उसने बहुत कुछ सीखा है, और वह चाहती है कि गांव के सभी बालिका भी उसकी तरह पढ़ लिख कर आगे बढ़े |

Teacher Testimonial

Center Name - Bandhanpur

Teacher Name - Sahodra Nag

My name is Sahodra Nag. I wanted to become a teacher since childhood. I have completed my higher secondary education from Kapu Higher Secondary School. I have done my higher secondary education with hard work and dedication. I continued my studies because I had a dream to become a teacher. I love to teach children. For my further studies, I am pursuing further studies in Thakur Shobha Singh Mahavidyalaya, Pathalgaon, District Jashpur. There I continued my studies. One day I hear about Impact Paras Balika Shiksha Kendra and there is a need for a teacher, to teach children in it. After asking my parents, I filled the form and got selected for teaching children. I teach in Kendra Bandhanpur and go from home to home. By joining this program, I fulfill my own needs, I don't ask from my parents and best of all, I have fulfilled my dream, I love to teach children, which I have fulfilled under this program. Recently my relationship was fixed for marriage. But I had a lot of desire to teach. I told the boys that I want to stay here in Paras and teach the children. So they also got ready. Now I am married, but even now my in-laws treat me like a daughter and they have no objection in letting me go to study. Iimpact Paras Beti Padhao Program Girl Child Education Center with whose cooperation the organization is being run must have been a great social, religious well wisher, philanthropist. I express my gratitude to this organization from the bottom of my heart.

Teacher Case Story-

Name- Prity Mahant

Mother name- Mrs. Bhimvati Mahant

Age- 26 year old

Village name- Kompara

नाम -प्रीति महंत,पिता- श्री संजय दास महंत , माता- श्रीमती भीमवती महंत , ग्राम - कोमपारा , पोस्ट - विजयनगर , थाना- कापू , तहसील- धरमजयगढ़, जिला - रायगढ़ ( छ. ग .) , पिन कोड - 496118 की निवासी है । प्रीति का जन्म 24 सितंबर सन 2000 को हुआ । प्रीति के परिवार में 5 सदस्य है। प्रीति की नानी, माँ ,मामा- मामी और प्रीति । प्रीति बचपन से ही अपने मामा के घर में रहती थी ।जब वह 3 साल की थी तब उसकी माँ अपना ससुराल को छोड़ कर अपने मायके आ गयी । प्रीति के एक बड़े भैया भी हैं जो कि अपने पापा के साथ रहते थे । प्रीति के पापा का बहुत बड़ा परिवार है लेकिन प्रीति कभी अपने परिवार वालों के पास नहीं गयी । प्रीति की परवरिश अकेले उसकी माँ ही कि और उसका सहयोग उनके पूरे मायके वाले किये प्रीति को सब बहुत प्यार करते थे , लेकिन कभी उसके पापा के परिवार वाले प्रीति से मिलने नहीं आते , यहाँ तक कि उसके पापा भी प्रीति को देखने नहीं आते । प्रीति के पापा ने दूसरी शादी कर ली लेकिन प्रीति की माँ ने ऐसा नहीं किया और अपनी बेटी की परवरिश में पूरा जीवन बिताने का फैसला ली । जब प्रीति 5 साल की थी तब वह अपने गांव कोमपारा के सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगी , लेकिन प्रीति के नाना को सरकारी स्कूल में पढ़ाना मंजूर नहीं था । प्रीति के नाना प्रीति को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना चाहते थे और प्रीति के नाना उसका एडमिशन प्राइवेट स्कूल विजयनगर में करा दिये ।प्रीति कक्षा 1 ली से लेकर कक्षा 5 वी तक प्राइवेट स्कूल विजयनगर में पढ़ी । प्रीति के नाना बहुत ज्यादा प्यार करते थे प्रीति से , लेकिन जब प्रीति 4 थी कक्षा में थी तब उसके नाना का देहांत हो गया , तब से प्रीति की माँ मेहनत मजदूरी कर कर के प्रीति को पढ़ाने लगी , और प्रीति की सारी जरूरत को पूरा करने लगी । प्रीति के कुछ बोलने से पहले ही उसकी माँ उसका जरूरत पूरा कर देती थी । प्रीति की माँ खुद के बारे में ना सोचते हुए प्रीति के लिए सब कुछ करने लगी । प्रीति 5 वी कक्षा पास करने के बाद 6 वीं सरकारी स्कूल में पढ़ने के लिए चली गयी , क्योंकि प्राइवेट स्कूल में बस कक्षा 5 वी तक ही थी और आगे पढ़ने के लिए कापू जाना पड़ता था । प्रीति अकेले कापू नहीं जा पाती इस वजह स उसे सरकारी स्कूल में पढ़ना पढ़ा । प्रीति बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थी , इस बात से प्रीति की माँ बहूत खुश रहती और प्रीति को पढ़ा लिखा कर के अपने पैर में खड़ा करना चाहती थी । प्रीति की माँ का बस एक ही सपना था प्रीति को पढ़ा लिखा कर के एक अच्छी बेटी बनाना । प्रीति भी बहुत मेहनत और लगन से पढ़ाई करती और अपनी माँ का सपना पूरा करना चाहती थी । प्रीति के गांव में ज्यादातर लड़कियों को नहीं पढ़ाते थे । जब प्रीति 8 वी पास कर के 9 वीं गयी तब प्रीति के गांव वाले बोलते थे , हाई स्कूल में कोई पास नहीं होते हैं , बेकार का वहां पढ़ने जाते हैं टाइम पास करने के लिए। ये सब सुन कर भी प्रीति उनकी बात पर ध्यान नहीं देती और अपने पढ़ाई पे लग जाती । प्रीति कक्षा 9 वीं में प्रथम आके अपने गांव वालों का मुंह बंद कर दी । उसके बाद जब 10 वीं पास की तब प्रीति के घर वाले बहुत खुश हुए । प्रीति के घर मे कोई 10 वीं कक्षा पास नहीं किये थे , लेकिन प्रीति ने 10 वीं पास कर के अपनी माँ की मेहनत का पहला उपहार दी । प्रीति ऐसे ही पढ़ाई करते- करते 12 वीं पास कर ली । प्रीति का सपना था की वो नर्स बने । प्रीति बाहर जा के पढ़ना चाहती थी , लेकिन प्रीति सोचने लग गयी कि अगर बाहर पढ़ाई करने गयी तो बहुत खर्च होगा और माँ बहुत परेशान होगी । प्रीति अपनी माँ को और परेशान नहीं करना चाहती थी इस वजह से अपना सपना छोड़ दी । उसकी माँ बहुत बोली आगे पढ़ाई कर लेकिन प्रीति आगे पढ़ना नही चाही। प्रीति घर पे रह कर घर के काम में हाँथ बटाने लगी । प्रीति सोचती थी कि काश कुछ काम मिल जाता जिससे अपनी माँ की मदद हो जाती ।

उसी समय गांव कोमपारा में एक लड़की आयी और गांव में कितने लड़कियाँ हैं उनका सर्वे करने लगी । जब वो लड़की प्रीति के घर सर्वे करने गयी तब प्रीति और उसका दोस्ती हो गया । उस लड़की का नाम सरिता डनसेना था और वह सलका की थी। सरिता डनसेना प्रीति को बतायी की इंपैक्ट द्वारा संचालित बालिका शिक्षा केन्द्र खुल रहा है , जिसमे यहाँ की बालिकाओं को पढ़ाया जाएगा और मैं ही यहाँ की लड़कियों को पढ़ाऊंगी। सरिता के बताने से प्रीति उतना नहीं समझी थी । सरिता डनसेना रोज केंद्र आती और बच्चों को बुलाती और पढ़ाती। प्रीति रोज सरिता डनसेना के केंद्र जाती और देखती थी कि कैसे बच्चों को पढ़ाया जाता है , कैसे बच्चों को खेल के माध्यम से पढ़ाया जाता है । कुछ दिन बाद सरिता डनसेना केंद आना बंद कर दी थी , उसके बाद प्रीति के पास सरिता डनसेना का फोन आया और सरिता डनसेना ने बताया कि वो बीमार है और रायपुर हॉस्पिटल में एडमिट है । सरिता डनसेना ने प्रीति से कहा कि मुझे कुछ दिन और यहाँ हॉस्पिटल में रहना होगा और केंद्र चलाने के लिए मुझे तुम्हारी जरूरत है । सरिता डनसेना ने बोला कि कोम पारा में और कोई लड़की 12 वीं पास नहीं है , इसलिए तुम्हे मेरी जगह में दिन केंद्र लगाना होगा इतना मदद चाहिए । प्रीति सरिता डनसेना की मदद करना चाहती थी , फिर प्रीति 1 सप्ताह के लिए केंद्र के बच्चों को पढ़ाई। प्रीति को बच्चों को पढ़ा कर के बहुत अच्छा लगा , औऱ प्रीति बच्चों को और पढ़ाना चाहती थी , और सोचती थी कि काश मुझे भी ऐसी बच्चों को पढ़ाने का मौका मिल जाता । एक दिन प्रीति के गांव का ही एक लड़का प्रीति को कॉल किया और बोला कि कुछ काम है, करेगी या नहीं। प्रीति को उस काम के बारे में पता नहीं था, फिर भी वो हाँ कर दी , उस लड़के ने बताया कि पारस स्वयंसेवी संस्था बालिका शिक्षा केन्द्र इंदकालो में अनुदेशिका की आवश्यकता है । प्रीति यह बात सुन के बहुत ही ज्यादा खुश हुयी , उसको लगा कि उसका बच्चों का पढ़ाने का सपना पूरा होने वाला है । प्रीति इंदकालो के लिए फॉर्म भरी । उसके कुछ दिन बाद परीक्षा हुआ , परीक्षा लिखने के कुछ दिन बाद एक सर् जी कॉल आया । सर् जी के द्वारा प्रीति को बताया गया कि उसको इंदकालो की अनुदेशिका के लिए सिलेक्ट किया गया है । यह बात सुन कर प्रीति खुश हुई और उससे ज्यादा उसके घर वाले उसकी माँ बहुत खुश हुयी। प्रीति को लगा उसको कुछ करने का मौका मिल गया और प्रीति कुछ कर के अपने माँ का घर खर्च में हाँथ बटाना चाहती थी । प्रीति को अगले दिन केंद जाना था , प्रीति थोड़ा घबरा गई थी , क्योंकि वह कभी घर से बाहर नहीं जाती थी और इंदकालो में प्रीति किसी को जानती नहीं थी । प्रीति सोच रही थी कि केंद्र गांव जा के वह कैसे करेगी? वहाँ के लोगों से कैसे बात करेगी । अगले दिन प्रीति समय से केंद्र पहुँची , वहाँ सुपरवाइजर बाबुलाल डनसेना सर् जी आये । सुपरवाइजर सर् जी प्रीति को केंद्र के बारे में बताए तथा रजिस्टर और केंद्र के समान के बारे बताये । सर् जी के द्वारा प्रीति को बताये कि बच्चों से तथा गांव के लोगों व पालकों से अच्छे से बात व्यवहार करना है, और बच्चों के घर जाकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रतिदिन केन्द्र बुलाना है । प्रीति इस संस्था से नई नई ही जुड़ी थी ,तो उसे बहुत डर लग रहा था, बच्चों को कैसे बताएगी , उसे क्या-क्या करना होगा, ये सब सोच को घबरा गयी थी। । प्रीति को सुपरवाइजर सर जी द्वारा बताया गया, कि बच्चों को कैसे पढ़ाना है? बच्चों के पलकों से को से कैसे बात करना है ,गांव वालों से कैसे बात करना है इन सब के बारे में प्रीति को सुपरवाइजर सर जी द्वारा बताया गया । प्रीति को केंद्र के बहुत सारे समान के बारे में पता नहीं था , उन सब के बारे में सुपरवाइजर सर् जी के द्वारा ही प्रीति को अगस्त किट और जोड़ो ज्ञान के बारे में समझाये और सर् जी के द्वारा बताया गया कि जोड़ो ज्ञान कीट से बच्चों को कार्ड के माध्यम से कैसे पढ़ाना है , गिनती माला के माध्यम से कैसे पढ़ाना है, छोटी गिनती माला बड़ी गिनती माला को कैसे गिनते हैं, इन सभी चीजों को सर के द्वारा एक - एक करके बताया गया । सुपरवाइजर के द्वारा प्रीति को बताया गया कि बच्चों को पढ़ाने के साथ - साथ बहुत सारी गतिविधियों और खेल के माध्यम से बच्चों को पढ़ाना । प्रीति को तो गतिविधियों के बारे में कुछ समझ में ही नहीं आना रहा था । प्रीति रोज केंद्र जाने लगी और बच्चों को पढ़ाने लगी और बच्चों के साथ - साथ उनके पालकों और गाँव के लोगों के साथ मिल-जुलकर रहने लगी। बच्चे और गांव के लोग भी प्रीति से अच्छे व्यवहार से बात करने लगे। ऐसे ही कुछ दिनों बाद सुपरवाइजर सर् जी प्रीति को CMC मीटिंग करने के लिए बोले । प्रीति को CMC मीटिंग के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी , प्रीति को सुपरवाइजर सर् जी के द्वारा CMC सदस्यों , अध्यक्ष, उपाध्यक्ष सब से मिलाये और CMC सदस्यों के साथ मिलकर मीटिंग करना है और केंद्र में उनका मदद कैसे लेना इस सब के बारे में प्रीति को समझाये । धीरे-धीरे प्रीति सब चीजों को अच्छे से समझने लगी । प्रीति को बच्चों को पढ़ाने में थोड़ा परेशानी होता था लेकिन प्रीति के पहले ट्रेनिंग के बाद से सब कुछ समझ आने लगा और वो आज बहुत ही अच्छे तरीके से बच्चों को पढ़ाने लगी है । प्रीति के कुछ करने का सपना पूरा हो गया और उसका सपना सिर्फ इम्पैक्ट द्वारा संचालित बालिका शिक्षा केन्द्र के द्वारा ही पूरा हुआ है । प्रीति चाहती है कि हर लडक़ी इस केंद्र में पढ़ -लिखकर एक पढ़ी लिखी लड़की बनी और अपने पैर में खड़े हो जाये । प्रीति इस संस्था की बहुत आभारी है इस संस्था के वजह से ओ कुछ कर पायी और एक जिम्मेदार बेटी बन पायी । मैं भी प्रीति की ही तरह इस संस्था की बहुत आभारी हूं और मैं चाहती हूँ यह बालिका शिक्षा केन्द्र हमेशा ऐसे ही चलती रहे और हमारे गांव की लड़कियों को ऐसे ही शिक्षा मिलती रहे ।


 CMC Case Story-

 यह कहानी है चैतमती नगेशिया जी की।उनके पति का नाम श्री पंचराम नगेशिया है। ये ग्राम+पोस्ट -सोनपुर ,थाना - कापू तहसील - धरमजयगढ़, जिला - रायगढ़ ,राज्य- छत्तीसगढ़ के निवासी है।उनके गांव में बहुत सी चीजों का असुविधा हैं जैसे -शौचालय और पानी का समस्या आदि।सबसे ज्यादा पानी का समस्या है ,पानी के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है।उनके घर में कुल 7 सदस्य है उनके 5 बेटियां है । चैतमती एक मध्यम वर्ग परिवार से है। उनके पास ज्यादा जमीन नहीं है,फिर भी खेती बाड़ी करते हैं उनकी आर्थिक स्थिति ठीक ना होने के कारण उनके पति दूसरे लोग के घर का काम करते है और बैल चराने जाते हैं, चैतमती जी भी दूसरो के घर का काम करने जाती है। चैतमती जी ज्यादा नहीं पढ़ी है। इसीलिए अपने बच्चो को पढ़ाना - लिखाना चाहती है उनके बच्चो को स्कूल भेजती हैं एक दिन चैतमती के पास एक आदमी आया और उसे एक पर्ची दिखाकर उससे कोरे कागज पर उसका हस्ताक्षर ले लिया, चैतमती को पढ़ना नही आता तो उसने बिना कुछ कहे हस्ताक्षर कर दिया। अगले दिन उसे पता चला कि वह आदमी उसके हस्ताक्षर का गलत उपयोग कर रहा है। उस दिन से उन्होंने ठान लिया कि मैं अपने बच्चों शिक्षित बनाऊंगी। गांव के दूसरे बच्चें ट्यूशन के लिए जाते थे लेकिन चैतमती के पास पैसा न होने के कारण वह हमेशा चिंतित रहती थी उसका भी मन कहता कि काश मेरे बच्चों को कोई पढ़ा देता। उनके गांव में जब से इंपैक्ट पारस स्वयंसेवी संस्था के सहयोग से बालिका शिक्षा केंद्र संचालन किया गया यह सुनकर चैतमती बहुत खुश हुई। उस दिन से वह अपने बच्चों को रोज केंद्र भेजा करती है। उनके गांव सोनपुर में बालिका शिक्षा केंद्र खुलने से बच्चो के शिक्षा पर काफी प्रभाव पड़ा है।उनके बच्चे घर में आकर बताते है की केंद्र में टीचर ने क्या - क्या सिखाया और बच्चो को होमवर्क देते हैं बच्चे घर में होमवर्क बनाते है और बच्चे उनके घर में अपने माता -- पिता को कविता ,कहानी पढ़कर सुनाते है उन्हें बहुत ही अच्छा लगता है उनके बच्चे केंद्र जाने से पढ़ने - लिखने को सीखे । इसी तरह उनके बच्चियों को मार्गदर्शन देते रहे हैं। इसीलिए चैतमती जी और उनके परिवार वाले इंपैक्ट पारस स्वयंसेवी संस्था बेटी पढ़ाओ को बहुत - बहुत धन्यवाद करते हैं।

CMC Case Story -


यह कहानी है केंद्र परसा के सीएमसी समुदाय की जो हमारे छत्तीसगढ़ के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्र राजगढ़ जिले के लगभग 150 किलोमीटर दूर में बसा हुआ है, जो कि चारों ओर पहाड़ियों से घिरा हुआ है। नदी, नाले, पहाड़, पर्वत, झरने इत्यादि का मनोरम दृश्य है। इससे आगे में मैनपाट बसा हुआ है, जिसको देखने के लिए बड़े दूर-दूर से लोग आते हैं। मैनपाट छत्तीसगढ़ का शिमला के नाम से जाना जाता है, जिसमें बाघ, भालू, शेर, चीता, हाथी इत्यादि पाया जाता है ।यह चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है। इंपैक्ट के सहयोग से हमारे गांव परसा में पारस स्वयं सेवी संस्था द्वारा संचालित किया गया है। जिसमें केंद्र सीएमसी समिति मुख्यता बेटी पढ़ाओ केंद्र में उपस्थित बालिकाओं की सहयोग हेतु बनाए गए हैं, सीएमसी समुदाय में कुल 15 सदस्य हैं।जिसमें सीएमसी सदस्य द्वारा केंद्र में होने वाली परेशानियों एवं समस्याओं पर बात किया जाता है।केंद्र में होने वाले सभी कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करते हैं और केंद्र की निगरानी भी करते हैं, साथ ही साथ बच्चों का केंद्र में पढ़ने जाने हेतु प्रेरित करते हैं।बालिकाओं को बढ़ावा देने एवं उनके लिए उचित शिक्षा हेतु ग्राम स्तर पर जागरूक कार्यक्रम में सहयोग प्रदान करते हैं।बालिकाओं को उचित शिक्षा हेतु केंद्र भेजते हैं और केंद्र में हो रही शिक्षा क्रियाकलाप आदि की जानकारी के लिए केंद्र का भ्रमण भी करते हैं,साथ ही साथ हर 3 महीने में बैठक भी किया जाता है जिसमें उनके शिक्षा और उचित क्रिया के बारे में बात किया जाता है और साथ ही साथ बालिकाओं को मिल रही सरकारी योजनाओं एवं ग्राम स्तर पर भी मिल रही सरकारी योजनाओं का जानकारी उन्हें दिया जाता है, साथ ही साथ उन जानकारी और उन योजनाओं का लाभ पहुंचाया जाता है।सीएमसी सदस्यों द्वारा केंद्र के लिए जरूरी साधनों का भी उपयोग किया जाता है और ग्राम स्तर पर प्रत्येक कार्यक्रम में लोगों को बेटी पढ़ाओ योजना के तहत बच्चों को केंद्र में भेजने के लिए प्रेरित किया जाता है। सीएमसी सदस्यों के साथ मीटिंग किया जाता है एवं हो रही समस्याओं पर चर्चा किया जाता है।सीएमसी सदस्यों द्वारा ग्राम स्तर पर केंद्र हेतु समस्त कार्यों में अपना सहयोग देते हैं एवं अपने बच्चों को केंद्र में पढ़ने हेतु भेजते हैं।सीएमसी सदस्य का महत्व ग्रामीण स्तर एवं केंद्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।केंद्र में होने वाली परेशानी एवं ग्राम स्तर पर होने वाली सभी परेशानियों को सीएमसी सदस्यों के साथ रखा जाता है, जिससे उसका निवारण किया जाता है। ऐसी ही परेशानी 2020 में कोरोना महामारी के रूप में आया।जो हमारे लिए, बच्चों के लिए तथा पूरे विश्व के लिए घातक साबित हुई। जिसमें कई लोगों की जानें गई इससे बचने हेतु सरकार के द्वारा कई प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध कराई गई। जैसे - लॉकडाउन में सैनिटाइजर ,2 गज की दूरी लागू किया गया। धीरे-धीरे कोरोना महामारी कम हो गई। इसी दौरान बच्चों के पढ़ाई पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। इससे बचने के लिए बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाया जाता था तथा बच्चों को एक प्रोजेक्ट में काम करने को बोला गया, जिसका नाम था छोटे वैज्ञानिक। जिसमें सदस्यों द्वारा बच्चों को जानकारी इकट्ठा करने में मदद की तथा बच्चों की देखरेख उनके साफ-सफाई व उनके खानपान का सहयोग किया गया।सीएमसी सदस्यों के द्वारा बच्चों के घर-घर जाकर उनके माता-पिता से मिलकर उनकी पढ़ाई-लिखाई व खानपान पर चर्चा कर सहयोग किया गया।

कुछ महीने बाद कोरोना महामारी कम होने लगा तथा केंद्र का संचालन पहले जैसे ठीक से होने लगा। कुछ महीने बाद सीएमसी सदस्य में से एक सदस्य की मृत्यु हो गई। जिनकी सूचना सभी सदस्यों को दिया गया तथा मीटिंग में सभी की सहमति से पुनर्गठन किया गया। जिसमें दो पलकों को सीएमसी सदस्य बनाया गया एवं आरंभ मंच पर चर्चा किया गया। जिसमें एल्यूमिनी और केंद्र के बच्चों को मिलाकर एक समूह बनाया गया। सभी सीएमसी सदस्यों का कहना हैं कि बच्चे इसी प्रकार पढ़ाई पर लक्ष्य बनाकर आगे बढ़े तथा बुद्धि का विकास हो और इस संस्था को हम तहे दिल से धन्यवाद देते हैं।

Child Testimonial –

नाम- पदमिनी यादव (CH-117427)

केंद्र- सोनबला (LC-01640)

 में और मेरे दोस्तों ने मिलकर एक दिन सर से पिकनीक जाने की बात कही तो उन्होंने कहा दो सालो से नहीं गए तो इस साल जाएंगे फिर स्कूल में बच्चों को पिकनिक लेने का मीटिंग हुआ । और हीराकुंड जाने का तय हुए । में बहुत खुश थी हीराकुंड जाने के लिए क्योंकि मैने हीराकुंड के बारे में काफी सुना था और मै पहले दिन से ही हीराकुंड जाने की तैयारी भी कर ली थी में इतनी उत्सुक थी कि मुझे सुबह का इंतजार नहीं हो रहा था । जैसे सुबह हुई स्कूल में सब इकट्ठा हुए और हीराकुंड के लिए निकल गए ।

जब वहां पहुंचे तो मैंने देखा कि सभी तरफ पानी ही पानी और पानी का रंग भी नीला था । मुझे बहुत आश्चर्य हुआ मैंने पहले ब्रिज भी नहीं देखा था उसे देख मेरे मन में विचार आया कि इतना सारा पानी है तो इस ब्रिज को कैसे बनाया होगा । वहां खूब मस्ती किए ।फिर हम गांधी मीनार गए उसके बाद तारामंडल गए वहां एक बड़ा सा पार्क है जहां मैंने और मेरे दोस्तो ने बहुत सारे फोटो भी खिचवाए । मैने वहां एक मूर्ति देखी पर वो किसकी मूर्ति थी पता नहीं ।सर जी ने बताया की वो पुराने जमाने के आदिमानव की मूर्ति है । पार्क बहुत ही खूबसूरत था मुझे वहां से आने का में ही नहीं हो रहा था । वहां बच्चो के खेलने की चीजें हैं मैं वहां बहुत कुछ खरीदी। मुझे हीराकुंड बहुत ही अच्छा लगा । मैंने वहां अपने दोस्तो के साथ बहुत ही एन्जॉय किया । और खाना खाकर शाम तक सभी कुशल पूर्वक वापस आ गए ।


Parent Case Story-

नाम- शायमा सिदार

उम्र- 29 साल

पति- श्री अचेत सिदार

परिवार के कुल संख्या 6

गांव-बनहर

यह कहानी शायमा सिदार का है जो ग्राम बनहरर पोस्ट दमदमा तहसील बरमकेला जिला रायगढ़ छतीसगढ़ की मूल निवासी है। ग्राम बनहर रायगढ़ जिले से 70 किलोमीटर दूर कोठी खोल एरिया में स्थित है ।श्यामा सिदार के परिवार में कुल 6 लोग रहते हैं उनके मम्मी-पापा और उनके पति और उनके दो बच्चों के साथ ग्राम वनहर में रहते हैं ।श्यामा अपने माता-पिता की इकलौती बेटी है जो शादी करके अपने माता-पिता के साथ रहती है। श्यामा सिदारकी माता पिता बुजुर्ग हो जाने के कारण उनका देखभाल कर रहे हैं। श्रीमती श्यामा सिद्धार्थ की जमीन जायदाद नहीं है वह मजदूरी करके अपना भरण-पोषण करते हैं श्यामा की मां झाड़ू बनाती है और उनके पति मछली बेचकर दूसरों का मजदूरी करके जो भी पैसा आता उसे घर का गुजारा कर रहे हैं। श्यामा को अपने माता-पिता बहुत ही पसंद करते थे। जब श्यामा छोटी थी तो उसे बहुत ही लाड प्यार करते थे। श्यामा की पढ़ाई प्राथमिक शाला बनहर में कक्षा पहली से पांचवी तक हुई।उसके बाद अपने गांव में माध्यमिक शाला ना होने पर हुए विष्णु पाली पढ़ने के लिए गए वहां पर आठवीं क्लास तक की पढ़ाई पूरी कर ली और उनको साइकिल ना आने पर हुए उच्च स्तर की पढ़ाई नहीं कर पाई ।

पढ़ाई छूट जाने के बाद श्यामा अपने माता पिता के साथ काम करने के लिए जाती खाना बनाती और अपने माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रहती थी कुछ सालों बाद श्यामा सिदार की शादी हो गई नदगांव में। कुछ साल नद गांव में रहने के बाद श्यामा और उसके पति घर में अपने माता पिता के साथ रहने लगे श्यामा सुधार की एक बेटी और एक बेटा है बेटी का नाम दिव्या सिधार र है जो पारस बालिका शिक्षा केंद्र वनहर में पढ़ती है जिसकी उम्र 9 साल है और उसके भाई को 5 साल हो रहा है। श्यामा सिदार अपने बच्चों का लालन पोषण बहुत अच्छे से कर रही है और बच्चों को प्रतिदिन सेंटर भेजती है और जो भी बच्चा नहीं जानता उसको अपने पति के साथ दिव्या को पढ़ाती है श्यामा का व्यवहार बहुत ही अच्छा है वह अपने परिवार और आसपास के लोगों से मिलजुल कर रहती है। श्यामा और उनके पति का हमारे केंद्र में बहुत बड़ा योगदान है क्योंकि जब भी हमारे केंद्र में सीएमसी मीटिंग का बैठक किया जाता है श्यामा सिदार और उनके प्रति सचेत सीधा मीटिंग में उपस्थित रहते हैं और और अपने बच्चों की समस्याओं को बचाते हैं और किस प्रकार निवारण किया जाए हल भी बताते हैं। और बच्चे की पढ़ाई से मैं बहुत ही खुश हैं ।

बच्चों के पढ़ने के लिए केंद्र बना तो अन्य पालक गणों के साथ मिलकर केंद्र का निर्माण किया गया और बीच-बीच में केंद्र में किस प्रकार का पढ़ाई हो रहा है कोई समस्या हो रहा है केंद्र की साफ सुथरा आदि का देखरेख पर रखरखाव करती है। श्यामा सिदार अपने बच्ची दिव्या सुधार की पढ़ाई को लेकर बहुत ही परेशान थी वह सोचती कि हमें तो अपने अपने लाइफ में पढ़ाई नहीं कर पाई लेकिन मैं अपने बच्चों को अच्छे से पढ़ा लिखा कर एक उज्जवल भविष्य दो और उसकी मानसिक तार्किकता में कुछ सुधार हो। श्यामा और उनके परिवार वाले बहुत ही खुश हैं क्योंकि इंपैक्ट पारस बालिका शिक्षा केंद्र वनहर में खुला है जिसमें बच्चों को समय में पढ़ाया जा रहा है और जाकर बहुत सारी गतिविधियों को सीख रही है और घर वालों को बता रहे है। श्रीमती श्यामा सिदार का सोचना है कि गांव घर में बच्चों का पढ़ाई स्तर पहले से काफी सुधार हुआ और बच्चों को पढ़ाने में सभी ही उत्सुक हैं और दिव्या भी अच्छे से पढ़ रही है इसीलिए के माता-पिता बहुत ही खुश है। बच्चों के हर जरूरतों के सामान को पूरा कर रहे हैं और अपने बच्चों परिवार के साथ खुशी-खुशी से रह रहे हैं।

Teacher Case Story –

नाम -प्रीति बरिहा

केंद्र- करनपाली

केंद्र कोड-00439

यह कहानी प्रीति बरिहा की है जिनके पिताजी का नाम श्री परसराम बरिहा है और उनकी माता जी का नाम श्रीमती विमला बरिहा है उनके परिवार में कुल 8 सदस्य हैं । प्रीति के पिताजी मजदूरी और खेती बाड़ी का कार्य करते हैं ।और उनकी मां हाउसवाइफ है। प्रीति की दो भाई और एक दीदी है ।प्रीति के बड़े भैया बाहर का काम करते हैं ।और छोटे भाई स्कूल जाता है। प्रीति की प्राथमिक पढ़ाई ग्राम पडकिडीपा में कक्षा पहली से दसवीं तक की शिक्षा प्राप्त की।

 प्रीति आगे की पढ़ाई ग्राम मोहापाली में जीवनधारा उच्च माध्यमिक विद्यालय मे शिक्षा प्राप्त की। प्रीति रोज 5 किलोमीटर दूर पढ़ने जाती थी साइकिल से । 12वीं में प्रीति का बहुत अच्छा अंक आया घर वाले बहुत खुश हुए और उसे आगे बढ़ाने के लिए बाहर भेजना चाहते थे । प्रीति को सारंगढ़ की डिग्री कॉलेज में एडमिशन मिला प्रीति अपने मां-बाप की काम ताज में मदद करने के लिए खेत में काम करने जाती थी और अपने घर का कामों में हाथ बताती थी प्रीति को पढ़ाई लिखाई में बहुत मनलगा था ।और अपने छोटे भाई को पढ़ाती थी ।और अच्छे से समझातीथी उसके होमवर्क में उसका मदद करती थी। ग्राम पडकीडीपा में पारस स्वयंसेवी संस्था है।

जिसमें बालिकाओं को पढ़ाया जाता है ।एक दिन धर्म सर आए थे और करनपाली में एक टीचर की आवश्यकता है। धर्म सर जी ने चंद्रा को पूछिए कि आपके गांव में कोई लड़की है ।क्या जो करनपाली पढ़ाने जा सकती है। तो चंद्रा ने हां है बोली उसके बाद चंद्रा ने धर्म सर को प्रीति के बारे में बताया धर्म सर जी द्वारा प्रीति को पूछा गया कि क्या तुम करनाली में बच्चों को पढ़ा सकती हो । प्रीति को पढ़ाई में बहुत ही मन था ।

इसीलिए हां मैं पढ़ लूंगी बोली प्रीति का जोइनिंग 1 जुलाई 2022 को हुआ तबसे प्रीति केंद्र करनपाली पढ़ाने जाती है। शुरू शुरू में प्रीति को बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ा ।क्योंकि बच्चे लोग पढ़ने नहीं आ रहे थे फिर एक दिन सभी बच्चों के पालक उसे मिलने गई और उनको बच्चों के पढ़ाई लिखाई पर विशेष रुप से ध्यान देने और समय पर रोज केंद्र भेजने के लिए बोली सभी पालकों ने अपने अपने बच्चों को समय पर केंद्र भेजने लगे तब से बच्चों को भी पढ़ाई में रुचि लगने लगी और प्रीति को भी उन को पढ़ाने में मजा आने लगा।

बच्चों को पढ़ाई के साथ साथ खेलकूद योगा ड्राइंग आदि जैसे एक्टिविटी के माध्यम से पढ़ाने लगी हर 3 महीने बाद टीचर ट्रेनिंग होता है जिसमें अनुदेशकों को ट्रेनिंग दिया जाता था ट्रेनिंग में बहुत कुछ सिखाते थे ट्रेनिंग में सिखाए गए तीनों को केंद्र में बच्चों को सिखाते थे।

 प्रीति बच्चों के पालकों से मिलती थी और उनके पढ़ाई लिखाई स्वास्थ्य के बारे में चर्चा करती थी और बच्चों पर विशेष ध्यान देने को कहती थी केंद्र के संचालन करने के लिए सीएमसी सदस्यों का गठन किया गया है जिनके साथ मिलकर 3 महीने में एक बार मीटिंग करते थे। और उस मीटिंग में केंद्र के बारे में और बच्चों के बारे में और अपने आसपास के बारे में चर्चा करते थे ।

केंद्र के सदस्य लोग बच्चों के पढ़ाई के लिए सहयोग करते हैं और सदस्यों से प्राप्त चंदासे बच्चों के लिए साबुन और केंद्र की साफ सफाई के के लिए सहयोग करते हैं केंद्र के साथ मिलकर आरंभ मंच बनाया गया है ।

जिसमें किशोरी बालिकाओं के साथ काम किया जाता है ।महीने में एक बार किशोरी बालिकाओं के साथ आरंभ मंच बैठक किया जाता है ।जिसमें बालिकाओं की कौशल विकास के लिए और उनको मुख आगरा बनाने के लिए अपनी बातों को दूसरों के सामने अच्छे से व्यक्त कर पाने के लिए उन को प्रेरित करने के लिए बैठक किया जाता है। जिसमें बालिकाएं स्वयं से उस चर्चा के विषय पर बातचीत करते हैं। प्रीति को इंपैक्ट पारस बालिका शिक्षा में काम किए हुए 2 साल हो गया प्रीति को इस काम को करके बहुत ही खुशी मिली क्योंकि उसे अपने माता-पिता वह अपने भैया के कामकाज में मदद करना था जो इस काम को करके उससे मिला ।

अब प्रीति इस कामको बहुत अच्छे से करती है ।प्रीति को इस संस्था में काम करके बहुत खुशी मिल रही है। वह इंपैक्ट पारस स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा आयोजित अनुदेशक का प्रशिक्षण में विभिन्न तरह के गतिविधियां बच्चों को पढ़ाने के लिए सीखी है वह केंद्र में जाकर बच्चों को सिखाती है बच्चों को पढ़ाती है और स्वयं भी अध्ययन करती है प्रीति पहले मुखर नहीं थी अब बुखार हो के बच्चों को पढ़ाती है जोड़ो ज्ञान अवश्य क्लीट के माध्यम से प्रीति को बहुत कुछ सीखने को मिला है जोड़ो ज्ञान में जोड़ना घटाना इत्यादि बच्चों को अच्छी तरीका से सिखाती है इस तरह का प्रशिक्षण अन्य संस्थान में उसे नहीं मिला है वह इस प्रशिक्षण से काफी खुश है और आगे भी चाहती है कि इस तरीके का प्रशिक्षण उसे मिलता रहे पारस स्वयंसेवी संस्था एवं इंपैक्ट के सहयोग से अनुदेशक का प्रशिक्षण में जो कुछ भी उसे सीखने को मिला वह उसके लिए वह बहुत-बहुत धन्यवाद देती है



NOTE:- All the testimonials of children are taken under parents guidance